पापा जी
ये थे मेरे पापा जी, मैंने कभी भी उनको एक हफ़्ते से ज़्यादा छुट्टी लेते नहीं देखा, वो भी सख़्त ज़रूरी होने पर। मैं जब स्नातकोत्तर करने के बाद पहली नौकरी करने जाने वाला था तो उन्होंने मज़ाक़ में कहा इसकी उम्र तक आने तक तो मैं १० साल काम कर चुका था। जैसा कि केंद्र सरकार की नौकरियों में होता है, उनके तबादले होते रहे मिसामढ़ी, दिल्ली, ईटारसी, लखनऊ, मुजफ्फरपुर, दानापुर, इलाहाबाद पर हमारी पढ़ाई में उन्हें जरा भी लापरवाही पसंद नहीं थी। चाहे बातों से समझाना पड़े या छड़ी से।
एक ऐसा समय भी आया जब मैं सिन्द्री से इंजीनियरिंग कर रहा था। पापा जी इलाहाबाद में और मम्मी मेरे छोटे भाई बहनों के साथ मुज़फ़्फ़रपुर में, उनकी भी कॉलेज की पढ़ाई चल रही थी और उनका इलाहाबाद जाना संभव नहीं था। सिर्फ़ पिताजी की नौकरी से हम सबका गुजारा आसान नहीं था। परंतु उन्होंने कभी अपनी परेशानियों नहीं बतायी और हमेशा हमारी ही फ़िक्र की। आज हमारा वो शक्ति स्तंभ ढह गया, एक साल से कैंसर से जूझते हुए वे अपनी हज़ार परेशानियों अपने में समेटे हुए इस दुनिया को छोड़ गये। बिलकुल सीधे सादे स्वभाव के, उन्होंने कभी किसी का अहित नहीं किया होगा। स्वर्ग में भी शायद देव गणों से यही पूछेंगे कि आज आपने पढ़ाई की।
अंतिम प्रणाम।